प्रो. विवेक कुमार मिश्र
हिंदी विभाग
राजकीय कला महाविद्यालय कोटा
फूल खिलते हैं और खिलते रहेंगे । फूल खिलकर ही बोलते हैं । अपने होने का , अपने अस्तित्व का गान खिलकर करते हैं । इससे आगे अपने रंग व स्वभाव को इस तरह लेकर आते हैं कि बस देखते रहिए । जो फूल यहां खिला है वहीं फूल और जगह भी खिलता है और अपनी ओर खींचता है पर कुछ जगहें इस तरह ध्यान खींचती है कि बस वह जगह और वह घड़ी महत्वपूर्ण हो जाती है कि उस घड़ी में आप वहां है और फूल को खिलते से देख रहे हों । यह समय का एक टुकड़ा रंग देता है मन को, संसार को और दुनिया को इस तरह कि इसके अलावा और कुछ जैसे आंखों को सूझता ही न हो और आंखें हैं कि बस देखती ही जाती हैं । फूल खिल कर मन रंगते हैं, पृथ्वी पर रंग लेकर आ जाते हैं और कहते हैं कि हमारे साथ खिलना सीखों, हमारे साथ खुश रहना सीखो। फूलों के साथ पृथ्वी ही रंगवती व गंधवती होती है । फूल जहां और जैसे भी खिलते हैं बस हम सब देखते ही रह जाते हैं । खिलते फूल को कोई भी छोड़ नहीं पाता । सब खिले रंग में ऐसे खो जाते हैं कि बस यही दुनिया है और इसे ही आंखों में भरना है । आंखों में बसा लेना है । फूलों के साथ हम सब पृथ्वी को खिलते , पृथ्वी की प्रसन्नता को और पृथ्वी की रागमयता को देखते हैं । जब तब ऐसा होता है कि कहीं जाकर आंखें टिक जाती हैं । हम तो बस देखते ही रह जाते हैं । यह देखना एक आश्चर्य की तरह होता है कि अरे ! यह देखो क्या रंग उतर आया ? क्या रंग मिला है ? और आवाज से होते-होते मन ही कहता है कि क्या फूल खिला है ? यह फूल का खिलना… यूं ही नहीं होता , न ही अचानक होता पर जब फूल खिलता है तो बस खिलता ही है और हम देखते रह जाते हैं । फूल जैसे-जैसे और जितने भाव में खिलता है उतने ही भाव और रंग में लोगबाग उसे देखते हैं । फूल हमारे मन को रंगता है । मन के रंग से हम सब संसार देखने लग जाते हैं । फूलों का रंग मन का रंग हो जाता है और जहां यह सब नहीं हो पाता है वहां न फूल बोलते न रंग बोलता न ही मन बोलता । मन का रंग के साथ फूलों की दुनिया में घूमना और अपने हाव भाव के रंग के साथ ही संसार को जानना समझना पड़ता है ।
फूल है । है तो है । वह अपनी जगह पर अडिग है । खिला है जिसे देखना है देखे। फूल सबके लिए खिलते हैं एक बराबर दूरी से सबको रंग , गंध और आंखों में राहत भरने का काम करते हैं । फूल खिल गया पर कैसे खिला ? कितना खिलकर मिला और कहां मिला ? उसे कौन देख रहा है ? कितने लोगों के मन में बस रहा है ? यह जगह अवसर और मुख्य मार्ग पर होने की स्थिति में उसे अलग ही पहचान दिला देता है । वैसे तो फूल जहां कहीं मिलते मन को अच्छा ही लगता है और हर फूल अपने खिलने की दशा में और रंग के हिसाब से अलग-अलग स्थितियों में ध्यान खींचना ही रहता है । यहां गवर्नमेंट कॉलेज कोटा के सामने से जो सड़क सीधे रेलवे स्टेशन की ओर जा रही है वह शहर को रेलवे स्टेशन से जोड़ने वाली मुख्य सड़क है । इस मार्ग पर असंख्य लोग आते जाते हैं यहां सघन हरीतिमा के बीच बोगन बेलिया ऐसे खिला है कि बस देखते रहिए । ऐसे खिला हुआ है कि उसके आगे कोई और नहीं , कुछ भी देखने को दिखता ही नहीं है । बस बोगेनवेलिया दिखता है । इस तरह दिखता है कि उसको छोड़कर कुछ और देखने की स्थिति में नहीं होते । यहां तो बोगन बेलिया यही कह रहा है कि यहां की बहार तो हम ही हैं । यहां का रास्ता हमें ही देखते पूरा होता है । भला हमें भुलाकर या हमें छोड़कर कोई कैसे भी जा सकता है । अपने चटक गुलाबी रंग और लाल रंग के साथ-साथ कई रंगों में , कई सेंड्स में आजकल आता है । इस तरह खिलता है कि बस खिलता ही खिलता है । रंग का उत्सव ऐसे मानता है कि आप बोगनविलिया को देखने समझने और उस पर रुक कर विचार करने के अलावा कुछ और कर ही नहीं सकते । यह बोगनविलिया अपनी और इस तरह खींच लेता है की आप कहीं भी चले जाएं… आंखों में एक बोगन बेलिया बसा ही रहता है । कहते हैं कि जब फूल आंखों में बस जाता है । मन पर छा जाता है और उसका रंग आंखों में उतर जाता है तो फूल के खिलने की उसके होने की और उसके अस्तित्व की कहानी न केवल पूरी होती है बल्कि सार्थक हो जाती है । फूल प्रकृति के साथ , पृथ्वी के साथ रंग का जो उत्सव रचता है वह मानव मन पर जीवन पर इस तरह से छा जाता है कि उसे छोड़कर आप कहीं जा ही नहीं सकते । वह आपके साथ आपके मन को लिए लिए चलता है । फूलों ने लोगों को न केवल अपनी ओर खींचा बल्कि वह लोगों से बातचीत भी करता है । देखने में आता है की कई लोग फूलों के आसपास रुक कर ठहर कर उसे देखते हैं । उससे बात करते हैं उसको समझने की कोशिश करते हैं और उसके रंग और रूप के साथ अपने भीतर आनंद और प्रसन्नता की स्थिति को महसूस करते हैं । इस तरह से इतना तो कहा जाना चाहिए कि जब फूल खिलते हैं तो उनके साथ हमारा मन खिल उठता है । और मन का खिलना ही जीवन का सबसे बड़ा उत्सव है । फूलों ने मन को पृथ्वी को और पूरे जीवन को रंगों से उल्लास से और उत्सव से इस तरह से रच दिया है कि प्रकृति के सहारे जब आप रास्ते पर आगे बढ़ते हैं तो बोगनविलिया आपसे यह कहते हुए चलता है कि आगे बढ़ो और हर स्थिति में हमारी तरह खिलते रहो । खिल कर चलो और अपने रंग से अपने भाव से अपने उल्लास से अपने उत्सव से जीवन में खुशियां बिखेरते चलों… फूलों ने खिलकर लोगों के जीवन में खुशी की ऐसी पूंजी सौंप दी है जिसके सहारे वे अपने लक्ष्य पर आगे बढ़ते रहते हैं । हर खिला फुल अपने लक्ष्य पर जाने का रास्ता दिखाता है ।
यह बोगनवेलिया बस सोचने पर बाध्य कर देता है कि रंग के उत्सव होली के समय तरह तरह के रंगों में खिल जाता है। मगन होकर नाचता है । रंगों का मेला ही लगा देता है। जहां जिस तरह खिलता है वहां आसपास की पूरी धरती
इन्हीं के रंगों में रंग जाती है । धरती को ये अपना सारा रंग और सारी खुशी ऐसे दे देते हैं कि और कोई काम हो ही नहीं। धरती को रंग का उत्सव देते हुए कहते हैं कि लो खिलो और खुश रहो । फूलों से धरती को इतना और इस तरह रंग देता है कि लोगबाग बस देखते ही कह उठते हैं कि देखो देखो प्रकृति ने होली का रंग रच दिया है । इस समय प्रकृति होली खेल रही है और पृथ्वी पर होली का भला इससे सुंदर और क्या रूप हो सकता है । यह तो बोगनविलिया ही जानता है या उसको अपनी आंखों में बसा कर देखने वाले लोगों का मन जानता है । कहते हैं कि खिलते चलों । राह चलते जब इस तरह खिले हुए बोगनवेलिया की बेल पेड़ों और दीवारों पर चढ़ते चढ़ते दीवार को ऐसे ढ़ंक लेती है कि सब कुछ भरा भरा रंगों से खिला हुआ ऐसा लगता है कि प्रकृति ने मानों रंगोत्सव रच दिया हो … फूलों ने ऐसा संसार रच दिया है कि बस देखते रहिए…. देखते ही रहिए यहां बोगनविलिया खिला है।